19 January, 2025

 

मौर्य काल की वास्तुकला

मौर्य काल (321 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास में वास्तुकला और कला के क्षेत्र में एक सुनहरे युग के रूप में जाना जाता है। इस काल में वास्तुकला ने अद्वितीय विकास किया, जिसमें धर्म, राजनीति और समाज का गहरा प्रभाव देखा गया। यह काल मौर्य सम्राटों, विशेष रूप से सम्राट अशोक, के योगदान के लिए प्रसिद्ध है।


1. मौर्य काल की मुख्य विशेषताएं

  1. धार्मिक स्थापत्य: बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण स्तूप, विहार और चैत्य जैसे धार्मिक संरचनाओं का निर्माण हुआ।
  2. पत्थर का उपयोग: मौर्य काल पहली बार भारतीय वास्तुकला में बड़े पैमाने पर पत्थरों के उपयोग के लिए जाना जाता है।
  3. पॉलिश किए गए पत्थर: मौर्य वास्तुकला की प्रमुख पहचान पॉलिश किए गए पत्थर हैं, जो एक चमकदार और परिष्कृत स्वरूप प्रदान करते हैं।
  4. मौर्य स्तंभ: अशोक के स्तंभ, जो शिलालेखों और प्रतीकों से सज्जित हैं, मौर्य वास्तुकला की सबसे प्रमुख पहचान हैं।

2. मौर्य काल की प्रमुख संरचनाएं

(i) स्तूप

  • सांची का स्तूप:
    • सम्राट अशोक द्वारा निर्मित, यह बौद्ध धर्म का प्रमुख प्रतीक है।
    • इसमें गोलाकार गुम्बद (अंडाकार संरचना), हर्मिका (गुम्बद के ऊपर का छोटा चबूतरा), और चार तोरण द्वार (सजावटी द्वार) शामिल हैं।
    • यह स्तूप बौद्ध धर्म के "धर्मचक्र प्रवर्तन" को दर्शाता है।

(ii) अशोक स्तंभ

  • सम्राट अशोक ने धर्म प्रचार के लिए स्तंभों का निर्माण किया।
  • लक्षण:
    • एकल पत्थर से बने हुए, उच्च गुणवत्ता वाली पॉलिश।
    • स्तंभों के शीर्ष पर जानवरों की आकृतियाँ, जैसे सिंह, हाथी, और बैल।
    • सारनाथ का सिंह स्तंभ (चार सिंह) आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।

(iii) गुफाएं

  • मौर्य काल में धार्मिक और आवासीय उपयोग के लिए गुफाओं का निर्माण किया गया।
  • प्रमुख गुफाएं:
    • बाराबर और नागार्जुनी गुफाएं (बिहार)
      • ये गुफाएं अजीवक संप्रदाय और बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाई गई थीं।
      • चिकने और चमकदार पॉलिश वाले पत्थर इन गुफाओं की खासियत हैं।

(iv) महल और किले

  • पाटलिपुत्र का महल:
    • यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी का मुख्य प्रशासनिक केंद्र था।
    • इस महल की संरचना में लकड़ी का भी उपयोग हुआ था, जिसे चीनी यात्री फाह्यान ने अत्यधिक भव्य बताया।
  • किले:
    • पाटलिपुत्र में बनाए गए किले रणनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थे।

3. मौर्य कला के प्रतीकात्मक तत्व

  1. धर्मचक्र: बौद्ध धर्म का प्रतीक, जो जीवन के चक्र को दर्शाता है।
  2. सिंह: शक्ति और शासन का प्रतीक।
  3. हाथी: बौद्ध धर्म में ज्ञान और समर्पण का प्रतीक।
  4. कमल: पवित्रता और आध्यात्मिकता का प्रतीक।

4. मौर्य वास्तुकला का महत्व

  • धार्मिक प्रभाव: बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में मौर्य वास्तुकला ने अहम भूमिका निभाई।
  • सांस्कृतिक धरोहर: यह भारतीय संस्कृति और कला की एक अमूल्य विरासत है।
  • तकनीकी नवाचार: मौर्य काल ने भारतीय स्थापत्य में पॉलिश पत्थरों और विशाल संरचनाओं का उपयोग शुरू किया।

निष्कर्ष

मौर्य काल की वास्तुकला भारतीय इतिहास में न केवल एक कला का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता के उच्च मानकों और तकनीकी दक्षता को भी दर्शाती है। मौर्य काल की संरचनाएं, जैसे सांची स्तूप और अशोक स्तंभ, आज भी भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में गर्व का विषय हैं।


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