19 January, 2025
Kutubuddin Aibak
क़ुतुब उद दीन ऐबक
तबक़ात ए नासिरी
तबक़ात ए नासिरी की रचना सिन्हाज़ उि सिराज़ केद्वारा फ़ारिी भाषा िेंकी गई थी और इििेंिुहम्िद गोरी िे
लेकर नासिरुद्दीन िहिदू केशािनकाल तक की जानकारी प्रदान की गईहै।
ताज़ुल मासिर
ताज़ुल मासिर की रचना हिन सनज़ामी केद्वारा अरबी/फ़ारिी भाषा मेंकी गई थी और इिमें1191 -1217 ई. केमध्य का
इसतहाि समलता है।
• कुतुबुद्दीनऐबक का जन्म 1150 मेंआधुसनक तसुकिस्तान, कज़ासकस्तान मेंहुआ था।
• कुतुबुद्दीनऐबक का वास्तसवक नाम क़ुतुब उद द्दीनऐबक था।
• ऐबक का अथिचन्रमा का देवताहोता है।
• मुहम्मद गोरी नेकुतुबुद्दीन ऐबक को गज़नी केबाजार िेएक दाि केरूप मेंख़रीदा था।
• कुतुबुद्दीनऐबक का इसतहाि
• मुहम्मद गोरी नेकुतुबुद्दीन ऐबक को िबिेपहलेअमीर ए आखूर (शाही अश्वशाला का असधकारी) केपद पर
सनयुक्त सकया था।
• तराइन केदिूरेयुद्ध मेंकुतुबुद्दीन ऐबक नेमहुम्मद गोरी की िेना मेंिहायक नेतत्ृव कतािकेरूप मेंिहयोग
सकया था।
• तराइन केदिूरेयुद्ध केबाद मुहम्मद गोरी नेकुतुबुद्दीन ऐबक को अपना प्रसतसनसध बनाकर भारत केशािन की
सजम्मेदारी िौंपी थी।
• चन्दावर युद्ध, बयाना और ग्वासलयर आक्रमण मेंभी कुतुबुद्दीन ऐबक नेमुहम्मद गोरी का िहयोग सकया था।
• कुतुबुद्दीनऐबक नेसदल्ली केपाि इन्रप्रस्थ िेमुहम्मद गोरी केप्रसतसनसध केरूप मेंभारत का शािन चलाया था।
• 1197 ई. में, कुतुबुद्दीन ऐबक नेिबिेपहलेराजस्थान मेंहो रहेसवरोहों का बलपूबिक दमन सकया इिकेबाद
िोलंकी वंश की राजधानी असन्हलवाडा पर आक्रमण सकया गया परन्तुभीम सद्वतीय आक्रमण का िामनानहीं
कर पाए और कुतुबुद्दीन ऐबक नेअसन्हलवाडा मेंखूब लूट मचाई तथा कई मंसदरों को तोड़कर मसस्जदों का
सनमािण भी करवाया।
• 1202 ई. में, कुतुबुद्दीन ऐबक केद्वारा बुन्देलखण्ड केसवरुद्ध आक्रमण सकया गया लेसकन राजा परमसदिदेव की
मत्ृयुकेकारण कुतुबुद्दीन ऐबक नेकासलंजर, महोबा और खजराहो पर आिानी िेअसधकार कर सलया था।
• 1205 ई. में, मुहम्मद गोरी नेखोक्खरों केसवरुद्ध आक्रमण सकया था सजिमेंकुतुबुद्दीन ऐबक नेगोरी का पूणि
15 माचि1206 ई. को मुहम्मद गोरी की अचानक मत्ृयुकेबाद उिकेप्रमुख दाि कुतुबुद्दीन ऐबक, नासिरुद्दीन
कुबाचा और ताजुद्दीन यल्दज़ू नेिाम्राज्य को आपि मेंबााँट सलया था सजिमेंताजुद्दीन यल्दज़ू को गज़नी,
नासिरुद्दीन कुबाचा को सिन्ध/मुल्तान और कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का िाम्राज्य समला था।
• 25 जून1206ई. को कुतुबुद्दीनऐबक नेराजसिंहािन प्राप्तसकयापरन्तुवैधासनक स्वीकृत 1208 मेंप्राप्तहुई थी।
• भारत मेंतुकि िाम्राज्य कीनीव रखनेवाला शािक कुतुबुद्दीनऐबक कोही माना जाताहै।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेशािक बननेकेबाद लाहौर को अपनी राजधानी बनाया लेसकन िैसनक मुख्यालय सदल्ली
केपाि इन्रप्रस्थ मेंथा सजिेकुछ इसतहािकारों नेकुतुबुद्दीन ऐबक की दिूरी राजधानी भी कहाहै।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेसदल्ली िल्तनत का शािक बननेके बाद अपनेनाम का कोई ख़ुत्बा (धासमिक प्रवचन)
नहींपढ़बाया औरन ही अपनेनाम केसिक्केजारी सकए।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेगुलाम वंश की स्थापना की सजिेप्रारसम्भक तुकि, इल्वारी वंश, दाि वंश और मामलूक
वंश केनाम िेभी जाना जाता है।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेस्वयं को मुहम्मद गोरी का दाि मानकर मसलक/सिपहिालार की उपासध िेही स्वयं को
िंतुष्टसकया।
• कुतुबुद्दीनऐबक नेमसलक/सिपहिालार केअलावा लाख बख्ि (यासन लाखों का दानदेनेवाला), पील बख्ि
(यासन हासथयों का दान देनेवाला), क़ुरान ख्वााँ(यासन क़ुरान का पाठ करनेवाला) और हासतम सद्वतीय की
उपासधयााँधारण की थीं।
• कुतुबुद्दीनऐबक नेताजुद्दीन यल्दज़ू कीपुत्री िेअपना सववाहसकया था।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेअपनी बसहन का सववाह नासिरुद्दीन कुबाचा के िाथ तथा अपनी पुत्री का सववाह
इल्तुतसमश केिाथ सकया था।
• कुतुबुद्दीनऐबक को सदल्ली िल्तनत का िंस्थापक माना जाता है।
• कुतुबुद्दीन ऐबक केदरबार मेंताज़ुल मासिर केरचनाकार हिन सनज़ामी तथा अलशुजाता ग्रन्थ केरचनाकार
फख्र ए मुदसबबर रहतेथे।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेसदल्ली मेंकुबबत उल इस्लाम मसस्जद का सनमािण करवाया था जो भारत की पहली
इस्लामी पद्धसत पर सनसमित मसस्जद मानी जाती है।
• राजस्थान केअजमेर मेंअढ़ाई सदन का झोपड़ा नामक मसस्जद का सनमािण भी कुतुबुद्दीन ऐबक केद्वारा ही
करवाया गया था।
• कुतुबुद्दीन ऐबक नेिूफी िंत ख्वाज़ा क़ुतुबुद्दीन बसख्तयार काकी की याद मेंक़ुतुब मीनार का सनमािण करवाया
था लेसकन उििेपहलेउिकी मत्ृयुहो गई थी और क़ुतुब मीनार का बाकी कायिइल्तुतसमश नेकरवाया था।
• 1 सदिम्बर 1210 को लाहौर मेंचौगान खलतेिमय कुतुबुद्दीन ऐबक की मत्ृयुहो गई थी।
• कुतुबुद्दीनऐबक का शािनकाल 1206 – 1210 ई. केमध्य मेंथा।
• कुतुबुद्दीनऐबक का मकबरा लाहौर, पासकस्तान मेंहै।
• कुतुबुद्दीनऐबक की मत्ृयुकेबाद आरामशाह को सदल्ली िल्तनत का शािक बनाया गया था।
08 March, 2023
त्रिकोणमिति फॉर्मूला
Mr. B. R. Gupta (Govt. Teacher)
M.A., B.ED., CTET, STET
Trigonometric functions
sin α, cos α
tan α = | sin α | , α ≠ | π | + πn, n є Z |
cos α | 2 |
cot α = | cos α | , α ≠ π + πn, n є Z |
sin α |
tan α · cot α = 1
sec α = | 1 | , α ≠ | π | + πn, n є Z |
cos α | 2 |
cosec α = | 1 | , α ≠ π + πn, n є Z |
sin α |
Pythagorean identity
sin2 α + cos2 α = 1
1 + tan2 α = | 1 |
cos2 α |
1 + cot2 α = | 1 |
sin2 α |
Sum-Difference Formulas
sin(α + β) = sin α · cos β + cos α · sin β
sin(α – β) = sin α · cos β – cos α · sin β
cos(α + β) = cos α · cos β – sin α · sin β
cos(α – β) = cos α · cos β + sin α · sin β
tan(α + β) = | tan α + tan β |
1 – tanα · tan β |
tan(α – β) = | tan α – tan β |
1 + tanα · tan β |
cot(α + β) = | cotα · cot β - 1 |
cot β + cot α |
cot(α - β) = | cotα · cot β + 1 |
cot β - cot α |
Double angle formulas
sin 2α = 2 sin α · cos α
cos 2α = cos2 α - sin2 α
tan 2α = | 2 tan α |
1 - tan2 α |
cot 2α = | cot2 α - 1 |
2 cot α |
Triple angle formulas
sin 3α = 3 sin α - 4 sin3 α
cos 3α = 4 cos3 α - 3 cos α
tan 3α = | 3 tan α - tan3 α |
1 - 3 tan2 α |
cot 3α = | 3 cot α - cot3 α |
1 - 3 cot2 α |
Power-reduction formula
sin2 α = | 1 - cos 2α |
2 |
cos2 α = | 1 + cos 2α |
2 |
sin3 α = | 3 sin α - sin 3α |
4 |
cos3 α = | 3 cos α + cos 3α |
4 |
Sum (difference) to product formulas
sin α + sin β = 2 sin | α + β | cos | α - β |
2 | 2 |
sin α - sin β = 2 sin | α - β | cos | α + β |
2 | 2 |
cos α + cos β = 2 cos | α + β | cos | α - β |
2 | 2 |
cos α - cos β = -2 sin | α + β | sin | α - β |
2 | 2 |
tan α + sin β = | sin(α + β) |
cos α · cos β |
tan α - sin β = | sin(α - β) |
cos α · cos β |
cot α + sin β = | sin(α + β) |
sin α · sin β |
cot α - sin β = | sin(α - β) |
sin α · sin β |
a sin α + b cos α = r sin (α + φ),
where r2 = a2 + b2, sin φ = | b | , tan φ = | b |
r | a |
Product to sum (difference) formulas
sin α · sin β = | 1 | (cos(α - β) - cos(α + β)) |
2 |
sin α · cos β = | 1 | (sin(α + β) + sin(α - β)) |
2 |
cos α · cos β = | 1 | (cos(α + β) + cos(α - β)) |
2 |
Tangent half-angle substitution
sin α = | 2 tan (α/2) |
1 + tan2 (α/2) |
cos α = | 1 - tan2 (α/2) |
1 + tan2 (α/2) |
tan α = | 2 tan (α/2) |
1 - tan2 (α/2) |
cot α = | 1 - tan2 (α/2) | |||||||||||||||||||||||||
2 tan (α/2)Table of cosine in radians
Table of angles cosines from 0° to 180°
Table of angles cosines from 181° to 360°
|
भारतीय राजकोषीय नीति
Mr. B. R. GUPTA (Govt. Teacher)
इसका निर्माण सरकार द्वारा किया जाता है अर्थनीति के सन्दर्भ में, सरकार के राजस्व संग्रह (करारोपण) तथा व्यय के समुचित नियमन द्वारा अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा देना राजकोषीय नीति (fiscal policy) कहलाता है। अतः राजकोषीय नीति के दो मुख्य औजार हैं - कर स्तर एवं ढांचे में परिवर्तन तथा विभिन्न मदों में सरकार द्वारा व्यय में परिवर्तन।
इसका निर्माण सरकार द्वारा किया जाता है अर्थनीति के सन्दर्भ में, सरकार के राजस्व संग्रह (करारोपण) तथा व्यय के समुचित नियमन द्वारा अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा देना राजकोषीय नीति (fiscal policy) कहलाता है। अतः राजकोषीय नीति के दो मुख्य औजार हैं - कर स्तर एवं ढांचे में परिवर्तन तथा विभिन्न मदों में सरकार द्वारा व्यय में परिवर्तन।
परिचय
ऐसी कोई अर्थव्यवस्था नहीं है जो राजकोषीय नीति या मौद्रिक नीति के बिना चल सकती हो। पर बहस इस बात की है कि आर्थिक प्रबंधन के लिए दोनों में कौन सी नीति की भूमिका मुख्य होनी चाहिए। सरकारी निर्माण परियोजनाओं, जम कर टैक्स लगाने और आर्थिक जीवन में अन्य हस्तक्षेपों के ज़रिये माँग और रोज़गार बढ़ाने के पक्षधर राजकोषीय नीतियों के विवेकसम्मत इस्तेमाल को आर्थिक वृद्धि की चालक शक्ति मानते हैं। घाटे की अर्थव्यवस्था को यह विचार मुख्यतः कींसियन अर्थशास्त्र की देन है। यह रवैया राजकोषीय नीतियों को प्रमुखता प्रदान करता है। कींसियन अर्थशास्त्र का बोलबाला होने से पहले मौद्रिक नीति के ज़रिये आर्थिक प्रबंधन करने का चलन था। साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएँ एक बार फिर मौद्रिक नीति को मुख्य उपकरण बनाने की तरफ़ झुकीं। उन्होंने कींसियन दृष्टिकोण की आलोचना की। मौद्रिक नीति के समर्थकों की मान्यता है कि टैक्स कम लगाने चाहिए और मौद्रिक नीति को सरकार के विवेक के भरोसे छोड़ने के बजाय कुछ निश्चित नियम-कानूनों के तहत चलाया जाना चाहिए। केवल इसी तरह से अर्थव्यवस्था का बेहतर प्रबंधन हो सकता है और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा जा सकता है। अर्थशास्त्र की भाषा में इस विचार को मौद्रिकवाद या मोनेटरिज़म की संज्ञा दी जाती है।
मौद्रिक नीति का संचालन मुख्यतः अर्थव्यवस्था के केंद्रीय बैंक (जैसे भारत का रिज़र्व बैंक) द्वारा किया जाता है। यह बैंक तयशुदा समष्टिगत आर्थिक नीतियों के तहत सरकार के कहने पर भी कदम उठाता है और सरकार से स्वतंत्र निर्णय भी लेता है। शुरू में मौद्रिक नीति आम तौर पर केवल ब्याज दरों में परिवर्तन और खुले बाज़ार के कामकाज के आधार पर ही चलती थी। बाद में मुद्रा बाज़ार का अनुभव और अन्य मौद्रिक उपकरणों के विकास के बाद मौद्रिक नीति का संचालन उत्तरोत्तर परिष्कृत होता चला गया। अमेरिका में गवर्नरों के फ़ेडरल रिज़र्व बोर्ड ने 1913 से ही आरक्षित मुद्रा की आवश्यकताओं और अर्थव्यवस्था में सकल मुद्रा की वृद्धि का जिम्मा सँभाल रखा है। बैंक ऑफ़ इंग्लैण्ड ने 1951 के बाद से मौद्रिक नीति के संबंध में कई तरह के प्रयोग किये हैं जिनमें उपभोक्ताओं को दिये जाने वाले ऋण के नियम निर्धारित करना, अर्थव्यवस्था में तरलता (नकदी की मात्रा) को समग्र रूप से देखना और मौद्रिक आधार को नियंत्रित करना शामिल है।
मौद्रिक नीति निर्धारित लक्ष्यों के हिसाब से चलती है। जैसे, कितनी मुद्रास्फीति होनी चाहिए, ब्याज दरों का कौन सा स्तर उचित होगा, बेरोज़गारी घटाने का समष्टिगत उद्देश्य कैसे पूरा किया जाए, सकल घरेलू उत्पाद कैसे बढ़ाया जाए, अर्थव्यवस्था की दीर्घकाल तक कैसे स्थिर रखा जाए, वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता के उपाय कैसे किये जाएँ, उत्पादन और दामों की स्थिरता कैसे कायम रखी जाए। मौद्रिकवाद के पैरोकार चाहते हैं कि सरकारी ख़र्च में कटौती की जाए और अर्थव्यवस्था पर लगे हुए नियंत्रण हटाये जाएँ। इनका दावा है कि अगर इतने महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को वेधने के लिए नीति के साथ अक्सर छेड़-छाड़ की जाएगी तो परिणामों की आकस्मिकता अस्थिरता पैदा कर सकती है। इसलिए ऐसे नियम बनाये जाने चाहिए कि सरकार न तो उधार ले सके और न ही बाज़ार में मनी की सप्लाई बढ़ा सके। इन अर्थशास्त्रियों को लगता है कि मौद्रिक नीति के संचालन में सरकार और राजनेताओं को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लेकिन, ऐसा होना व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं होता। मोनेटरी पॉलिसी कमेटी के सदस्यों की नियुक्तियों के ज़रिये सरकार इस नीति को प्रभावित करती रहती है। सरकार नीतिगत उद्देश्यों में तब्दीली करके और समष्टिगत नीतियों को अपने हिसाब से बदल कर स्वतंत्र मौद्रिक नीति के आग्रह को पनपने नहीं देती।
मौद्रिकवाद के मुख्य प्रणेता अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ़्रीडमैन और उनकी साथी अन्ना श्वार्ज़ हैं। इन दोनों ने अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा से संबंधित सिद्धांतों के आधार पर दीर्घावधि में होने वाली मनी सप्लाई और आर्थिक गतिविधियों के बीच संबंध का अध्ययन करके अपने निष्कर्ष निकाले हैं। लेकिन, जब मौद्रिकवाद के सिद्धांत अमेरिकी, ब्रिटिश और अन्य युरोपीय देशों में लागू किये गये तो कई तरह की दिक्कतें सामने आयीं। धनापूर्ति (मनी सप्लाई) को परिभाषित करना बहुत मुश्किल साबित हुआ। देखा गया कि अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति का लक्ष्य बार-बार गड़बड़ा जाता है इसलिए हर बार नयी परिभाषा की ज़रूरत पड़ती है। धन के परिसंचरण और फैलाव की रक्रतार उतनी स्थिर और निरंतर साबित नहीं हुई जितना पहले समझा जा रहा था। राजकोषीय नीति का मतलब है सरकार अपने ख़जाने से क्या ख़र्च करना चाहती है और किस तरह के टैक्स लगा कर राजस्व हासिल करने की इच्छुक है। इसी नीति के साथ सरकार की ऋण नीति भी जुड़ी होती है ताकि अगर पर्याप्त राजस्व न प्राप्त होने की दशा में कर्ज़ उगाहे जा सकें। राजकोषीय नीति के आधार पर तय किया जाता है कि राष्ट्रीय आमदनी का कितना प्रतिशत कराधान से उगाहा जाना चाहिए। इसी के साथ सवाल जुड़ा रहता है कि कम टैक्स लगा कर उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जाए या ज़्यादा टैक्स लगा कर लोकोपकारी परियोजनाएँ चलायी जाएँ जिससे आमदनी का समतामूलक पुनर्वितरण किया जा सके। राजकोषीय नीति का दूसरा सरोकार यह होता है कि टैक्स लगाये जाएँ तो किस प्रकार के। प्रत्यक्ष कर (जैसे आय कर) लगाये जाएँ या फिर बिक्री, माल और मूल्यवर्धन जैसे अप्रत्यक्ष कर लगाए जाएँ। अप्रत्यक्ष करों का प्रभाव सभी लोगों की आमदनी पर पड़ता है। वह राजकोषीय नीति तटस्थ समझी जाती है जिसके कारण एक समूह के उपभोग दूसरे की अपेक्षा प्रभावित नहीं होता।
राजकोषीय नीति युद्ध और शांति के समय भिन्न- भिन्न होती है। युद्ध के समय सेना पर होने वाले ख़र्च की भरपाई के लिए उतने ही टैक्स लगाने के बजाय लोभ यह होता है कि ऋण लेकर काम चलाया जाए। दूसरी तरफ़ अगर सरकार के ऊपर काफ़ी कर्ज लदा हुआ है तो शांतिकाल में वह लोकोपकारी योजनाएँ चलाने के लिए राजस्व की जुगाड़ करने के बजाय कर्ज़ उतारने में धन ख़र्चर् करती नज़र आयेगी। राजकोषीय नीति के ज़रिये बुद्धिमान सरकारें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की भूमिका निभा सकती हैं। मसलन, अगर मंदी का दौर चल रहा है तो सरकार कम टैक्स लगाने और अधिक ख़र्चे करने का फ़ैसला ले सकती है। तेज़ी के दौर में ज़्यादा टैक्स लगाये जा सकते हैं और ख़र्चा कम करके सार्वजनिक वित्त यानी सरकारी खज़ाने की हालत सुधारी जा सकती है।
राजकोषीय संघवाद इसी नीति का अंग है। इसके तहत राष्ट्रीय, प्रादेशिक और शहर के स्तर पर अलग-अलग कराधान और व्यय संबंधी नीतियाँ अपनायी जाती हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)