Search

08 March, 2023

ब्रह्मांड: अवधारणा और उत्पत्ति वीडियो क्लास

 ब्रह्मांड: अवधारणा और उत्पत्ति भाग _1 वीडियो क्लास

उपर दी गई लिंक पर क्लिक करके वीडियो क्लास कर सकते हैं।

हमेशा जुड़े रहने के लिए subscribe और शेयर करें।

भारतीय राजकोषीय नीति

                 Mr. B. R. GUPTA (Govt. Teacher)

इसका निर्माण सरकार द्वारा किया जाता है अर्थनीति के सन्दर्भ में, सरकार के राजस्व संग्रह (करारोपण) तथा व्यय के समुचित नियमन द्वारा अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा देना राजकोषीय नीति (fiscal policy) कहलाता है। अतः राजकोषीय नीति के दो मुख्य औजार हैं - कर स्तर एवं ढांचे में परिवर्तन तथा विभिन्न मदों में सरकार द्वारा व्यय में परिवर्तन।

परिचय
ऐसी कोई अर्थव्यवस्था नहीं है जो राजकोषीय नीति या मौद्रिक नीति के बिना चल सकती हो। पर बहस इस बात की है कि आर्थिक प्रबंधन के लिए दोनों में कौन सी नीति की भूमिका मुख्य होनी चाहिए। सरकारी निर्माण परियोजनाओं, जम कर टैक्स लगाने और आर्थिक जीवन में अन्य हस्तक्षेपों के ज़रिये माँग और रोज़गार बढ़ाने के पक्षधर राजकोषीय नीतियों के विवेकसम्मत इस्तेमाल को आर्थिक वृद्धि की चालक शक्ति मानते हैं। घाटे की अर्थव्यवस्था को यह विचार मुख्यतः कींसियन अर्थशास्त्र की देन है। यह रवैया राजकोषीय नीतियों को प्रमुखता प्रदान करता है। कींसियन अर्थशास्त्र का बोलबाला होने से पहले मौद्रिक नीति के ज़रिये आर्थिक प्रबंधन करने का चलन था। साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएँ एक बार फिर मौद्रिक नीति को मुख्य उपकरण बनाने की तरफ़ झुकीं। उन्होंने कींसियन दृष्टिकोण की आलोचना की। मौद्रिक नीति के समर्थकों की मान्यता है कि टैक्स कम लगाने चाहिए और मौद्रिक नीति को सरकार के विवेक के भरोसे छोड़ने के बजाय कुछ निश्चित नियम-कानूनों के तहत चलाया जाना चाहिए। केवल इसी तरह से अर्थव्यवस्था का बेहतर प्रबंधन हो सकता है और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा जा सकता है। अर्थशास्त्र की भाषा में इस विचार को मौद्रिकवाद या मोनेटरिज़म की संज्ञा दी जाती है।

मौद्रिक नीति का संचालन मुख्यतः अर्थव्यवस्था के केंद्रीय बैंक (जैसे भारत का रिज़र्व बैंक) द्वारा किया जाता है। यह बैंक तयशुदा समष्टिगत आर्थिक नीतियों के तहत सरकार के कहने पर भी कदम उठाता है और सरकार से स्वतंत्र निर्णय भी लेता है। शुरू में मौद्रिक नीति आम तौर पर केवल ब्याज दरों में परिवर्तन और खुले बाज़ार के कामकाज के आधार पर ही चलती थी। बाद में मुद्रा बाज़ार का अनुभव और अन्य मौद्रिक उपकरणों के विकास के बाद मौद्रिक नीति का संचालन उत्तरोत्तर परिष्कृत होता चला गया। अमेरिका में गवर्नरों के फ़ेडरल रिज़र्व बोर्ड ने 1913 से ही आरक्षित मुद्रा की आवश्यकताओं और अर्थव्यवस्था में सकल मुद्रा की वृद्धि का जिम्मा सँभाल रखा है। बैंक ऑफ़ इंग्लैण्ड ने 1951 के बाद से मौद्रिक नीति के संबंध में कई तरह के प्रयोग किये हैं जिनमें उपभोक्ताओं को दिये जाने वाले ऋण के नियम निर्धारित करना, अर्थव्यवस्था में तरलता (नकदी की मात्रा) को समग्र रूप से देखना और मौद्रिक आधार को नियंत्रित करना शामिल है।

मौद्रिक नीति निर्धारित लक्ष्यों के हिसाब से चलती है। जैसे, कितनी मुद्रास्फीति होनी चाहिए, ब्याज दरों का कौन सा स्तर उचित होगा, बेरोज़गारी घटाने का समष्टिगत उद्देश्य कैसे पूरा किया जाए, सकल घरेलू उत्पाद कैसे बढ़ाया जाए, अर्थव्यवस्था की दीर्घकाल तक कैसे स्थिर रखा जाए, वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता के उपाय कैसे किये जाएँ, उत्पादन और दामों की स्थिरता कैसे कायम रखी जाए। मौद्रिकवाद के पैरोकार चाहते हैं कि सरकारी ख़र्च में कटौती की जाए और अर्थव्यवस्था पर लगे हुए नियंत्रण हटाये जाएँ। इनका दावा है कि अगर इतने महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को वेधने के लिए नीति के साथ अक्सर छेड़-छाड़ की जाएगी तो परिणामों की आकस्मिकता अस्थिरता पैदा कर सकती है। इसलिए ऐसे नियम बनाये जाने चाहिए कि सरकार न तो उधार ले सके और न ही बाज़ार में मनी की सप्लाई बढ़ा सके। इन अर्थशास्त्रियों को लगता है कि मौद्रिक नीति के संचालन में सरकार और राजनेताओं को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लेकिन, ऐसा होना व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं होता। मोनेटरी पॉलिसी कमेटी के सदस्यों की नियुक्तियों के ज़रिये सरकार इस नीति को प्रभावित करती रहती है। सरकार नीतिगत उद्देश्यों में तब्दीली करके और समष्टिगत नीतियों को अपने हिसाब से बदल कर स्वतंत्र मौद्रिक नीति के आग्रह को पनपने नहीं देती।

मौद्रिकवाद के मुख्य प्रणेता अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ़्रीडमैन और उनकी साथी अन्ना श्वार्ज़ हैं। इन दोनों ने अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा से संबंधित सिद्धांतों के आधार पर दीर्घावधि में होने वाली मनी सप्लाई और आर्थिक गतिविधियों के बीच संबंध का अध्ययन करके अपने निष्कर्ष निकाले हैं। लेकिन, जब मौद्रिकवाद के सिद्धांत अमेरिकी, ब्रिटिश और अन्य युरोपीय देशों में लागू किये गये तो कई तरह की दिक्कतें सामने आयीं। धनापूर्ति (मनी सप्लाई) को परिभाषित करना बहुत मुश्किल साबित हुआ। देखा गया कि अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति का लक्ष्य बार-बार गड़बड़ा जाता है इसलिए हर बार नयी परिभाषा की ज़रूरत पड़ती है।  धन के परिसंचरण और फैलाव की रक्रतार उतनी स्थिर और निरंतर साबित नहीं हुई जितना पहले समझा जा रहा था। राजकोषीय नीति का मतलब है सरकार अपने ख़जाने से क्या ख़र्च करना चाहती है और किस तरह के टैक्स लगा कर राजस्व हासिल करने की इच्छुक है। इसी नीति के साथ सरकार की ऋण नीति भी जुड़ी होती है ताकि अगर पर्याप्त राजस्व न प्राप्त होने की दशा में कर्ज़ उगाहे जा सकें। राजकोषीय नीति के आधार पर तय किया जाता है कि राष्ट्रीय आमदनी का कितना प्रतिशत कराधान से उगाहा जाना चाहिए। इसी के साथ सवाल जुड़ा रहता है कि कम टैक्स लगा कर उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जाए या ज़्यादा टैक्स लगा कर लोकोपकारी परियोजनाएँ चलायी जाएँ जिससे आमदनी का समतामूलक पुनर्वितरण किया जा सके। राजकोषीय नीति का दूसरा सरोकार यह होता है कि टैक्स लगाये जाएँ तो किस प्रकार के। प्रत्यक्ष कर (जैसे आय कर) लगाये जाएँ या फिर बिक्री, माल और मूल्यवर्धन जैसे अप्रत्यक्ष कर लगाए जाएँ। अप्रत्यक्ष करों का प्रभाव सभी लोगों की आमदनी पर पड़ता है। वह राजकोषीय नीति तटस्थ समझी जाती है जिसके कारण एक समूह के उपभोग दूसरे की अपेक्षा प्रभावित नहीं होता।

राजकोषीय नीति युद्ध और शांति के समय भिन्न- भिन्न होती है। युद्ध के समय सेना पर होने वाले ख़र्च की भरपाई के लिए उतने ही टैक्स लगाने के बजाय लोभ यह होता है कि ऋण लेकर काम चलाया जाए। दूसरी तरफ़ अगर सरकार के ऊपर काफ़ी कर्ज लदा हुआ है तो शांतिकाल में वह लोकोपकारी योजनाएँ चलाने के लिए राजस्व की जुगाड़ करने के बजाय कर्ज़ उतारने में धन ख़र्चर् करती नज़र आयेगी। राजकोषीय नीति के ज़रिये बुद्धिमान सरकारें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की भूमिका निभा सकती हैं। मसलन, अगर मंदी का दौर चल रहा है तो सरकार कम टैक्स लगाने और अधिक ख़र्चे करने का फ़ैसला ले सकती है। तेज़ी के दौर में ज़्यादा टैक्स लगाये जा सकते हैं और ख़र्चा कम करके सार्वजनिक वित्त यानी सरकारी खज़ाने की हालत सुधारी जा सकती है।

राजकोषीय संघवाद इसी नीति का अंग है। इसके तहत राष्ट्रीय, प्रादेशिक और शहर के स्तर पर अलग-अलग कराधान और व्यय संबंधी नीतियाँ अपनायी जाती हैं।

07 March, 2023

हुमायूँ

 मिर्जा नासिर-उद-दीन मुहम्मद ( फारसी : نصیرالدین محمد ) ( फारसी उच्चारण: [na'siːrʊdiːn mʊha'mad] ; 6 मार्च 1508 [1] - 27 जनवरी 1556), अपने शाही नाम , हुमायूँ से बेहतर जाना जाता है ; ( फारसी : همایون फ़ारसी उच्चारण: [hʊma'juːn] ), मुगल साम्राज्य का दूसरा सम्राट था, जिसने पूर्वी अफगानिस्तान , पाकिस्तान , उत्तरी भारत और बांग्लादेश में शासन किया था।1530 से 1540 तक और फिर 1555 से 1556 तक। अपने पिता, बाबर की तरह, उसने जल्दी ही अपना साम्राज्य खो दिया, लेकिन अतिरिक्त क्षेत्र के साथ, फारस के सफाविद वंश की सहायता से इसे वापस पा लिया। 1556 में उनकी मृत्यु के समय, मुगल साम्राज्य लगभग दस लाख वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था।

19 November, 2017

10 th exam pattern

Bihar Board Matric Exam 2018 Mathematics Questions Pattern
According to Bihar Board official Matric Exam 2017 question paper will have 100 marks questions.
Questions TypeTotal No of QuestionsTotal Marks
Objective5050
Short Answer22 (15 questions to attempt)30
Long Answer420

Bihar Board Matric Exam 2018 Science Questions Pattern
Bihar Board Science questions paper will have 80 marks theory paper and 20 marks practical paper.
Question TypeTotal No of QuestionsTotal Marks
Objective Type4040
Short Answer18 (12 questions to attempt)24
Long Answer316 (Physics – 6, Chemistry – 5 & Biology- 5 )

Bihar Board Matric Exam 2018 Social Science Questions Pattern
Bihar Board Matric Exam 2018 Social Science will have total 80 marks theory paper.
Question TypeTotal No of QuestionsTotal Marks
Objective4040
Short Answer18 (12 questions to attempt)24
Long Answer416

Bihar Board Matric Exam 2018 Home Language / Other Language Questions Pattern
Bihar Board languages subjects will be of 100 marks.
Question TypeTotal No of QuestionsTotal Marks
Objective5050
Subjective (Essay, Letter , Summary Etc)35
Short Answer8 (5 questions to attempt)10
Long Answer15

Bihar Board Matric Exam 2018 Sanskrit Questions Pattern
Bihar Board Matric Exam 2018 Sanskrit paper will be of 100 marks.
Question TypeTotal No of QuestionsTotal Marks
Objective5050
Subjective (Application, Letter, Essay etc)34
Short Answer12 (8 questions to attempt)16

Bihar Board Matric Exam 2018 English Questions Pattern
Bihar Board Matric Exam 2018 English paper will have 100 marks question paper.
Question TypeTotal No of QuestionsTotal Marks
Objective5050
Subjective (Comprehensive, Writing)50
Short Answer8 (5 questions to attempt)10



BSEB MODEL SET



Bihar School Examination Bord science set
click here
file:///D:/10%20th/Science-(Matric)-Set-1-10-2017-01-16.pdf

इटली का एकीकरण

इटली का एकीकरण कैवोर ने इटली को एकजुट किया:  राष्ट्रवाद जहां साम्राज्यों को नष्ट करता है, वहीं इसने राष्ट्रों का निर्माण भी किया है।  इटली ढ...