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12 March, 2017

प्रकाश का परावर्तन- अपवर्तन



परावर्तन 

रावर्तन (अंग्रेज़ी:Reflection) अर्थात "जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्‍यम से चलकर दूसरे माध्‍यम की सतह से टकराकर वापस उसी माध्‍यम में लौट आये तो इस घटना अथवा क्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।"


परावर्तन के नियम


प्रकाश के परावर्तन के निम्न नियम हैं-
1.आने वाली किरण (आपाती किरण), परावर्तित किरण (जाने वाली किरण) एवं अभिलम्‍ब तीनों एक ही तल में होते हैं।
2.आपतन कोण (i), परावर्तन कोण (r) के बराबर होता है। अतः i = r

इसका अर्थ यह निकलता है कि जितने कोण पर कोई प्रकाश की किरण किसी दर्पण पर गिरेगी, वह उतने ही कोण से गिरने के पश्‍चात वापस चली जायेगी।
3.परावर्तन की क्रिया में प्रकाश की आवृति एवं चाल परिवर्तित नहीं होती अर्थात प्रकाश की ऊर्जा कम नहीं होती है।
4.नियम 2 से कहा जा सकता है कि यदि आपतन कोण शून्‍य हो तो परावर्तन कोण भी शून्‍य होगा। इस स्‍थिति में प्रकाश की किरण जिस मार्ग से आती है, उसी मार्ग से वापस चली जाती है या इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि अभिलम्‍बवत आपतन की स्‍थिति में प्रकाश किरण अपने आगमन मार्ग से परावर्तित हो जाती है।


अपवर्तन

जब प्रकाश की किरणें एक पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करती है, तो दोनों माध्यमों को अलग करने वाले तल पर अभिलम्बत् आपाती होने पर बिना मुड़े सीधे निकल जाती है, परन्तु तिरछी आपाती होने पर वे अपनी मूल दिशा से विचलित हो जाती है। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं। जब प्रकाश की कोई किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है, तो दोनों माध्यमों के पृष्ठ पर खींचे गए अभिलंब की ओर झुक जाती है तथा जब किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती, तो वह अभिलंब से दूर हट जाती है, लेकिन जो किरण अभिलंब के समांतर प्रवेश करती है, उनके पथ में कोई परिवर्तन नहीं होता।


अपवर्तन के नियम


  • आपतित किरण, अभिलंब तथा अपवर्तित किरण तीनों एक ही समतल में स्थित होते हैं।
  • किन्हीं दो माध्यमों के लिए आपतन कोण के ज्या (sine) तथा अपवर्तन कोण के ज्या का अनुपात एक नियतांक होता है। अर्थात्

 (नियतांक)
नियतांक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं। इस नियम को स्नेल का नियम भी कहते हैं।
  • किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंग के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है। तरंगदैर्ध्य बढ़ने के साथ अपवर्तनांक का मान कम हो जाता है। अतः लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम तथा बैंगनी रंग का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है।
  • ताप बढ़ने पर भी सामान्यतः अपवर्तनांक घटता है। लेकिन यह परिवर्तन बहुत ही कम होता है।
  • किसी माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक निर्वात में प्रकाश की चाल तथा उस माध्यम में प्रकाश की चाल के अनुपात के बराबर होता है। अर्थात्
निर्वात अपवर्तनांक  = निर्वात में प्रकाश की चाल / माध्यम में प्रकाश की चाल

अपवर्तनांक के कारण घटित घटनाएँ

  • द्रव में अंशतः डूबी हुई सीधी छड़ टेढ़ी दिखाई पड़ती है।
  • तारे टिमटिमाते हुए दिखाई पड़ते हैं।
  • सूर्योदय के पहले एवं सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखाई देते हैं।
  • पानी से भरे किसी बर्तन की तली में पड़ा हुआ सिक्का ऊपर उठा हुआ दिखाई पड़ता है।
  • जल के अन्दर पड़ी हुई मछली वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर उठी हुई दिखाई पड़ती है।
  • पूर्ण आन्तरिक परावर्तन  

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (अंग्रेज़ीTotal Internal Reflection) एक प्रकाशीय परिघटना है।

प्रकाश हमेशा ही एक माध्यम से प्रकाशीय रूप से सघन माध्यम में जा सकता है, लेकिन यह विरल माध्यम में हमेशा नहीं जा सकता। जब प्रकाश किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम के पृष्ठ पर आपतित हो रही हों और आपतन कोण क्रांतिक कोण से अधिक हो, तब प्रकाश का अपवर्तन नहीं होता, बल्कि संपूर्ण प्रकाश परावर्तित होकर उसी माध्यम में लौट जाता है। इस घटना को 'पूर्ण आन्तरिक परावर्तन' कहते हैं।

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन का एक उपयोगी प्रयोग ऑप्टिकल फाइबर में किया जाता है। प्रकाशीय तन्तुओं का कार्य पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर ही आधारित है।

प्रकाश का प्रकीर्णन 

प्रकाश का प्रकीर्णन (अंग्रेज़ीLight Scattering) वह प्रकीर्णन है, जिसमें ऊर्जा का वाहक और प्रकीर्ण होने वाला विकिरण प्रकाश होता है।
परिभाषा
जब प्रकाश अणुओं, परमाणुओं व छोटे-छोटे कणों पर आपतित होता है तो उसका विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णन हो जाता है। जब सूर्य का प्रकाश जो कि सात रंगों का बना होता है, वायुमंडल से गुजरता है तो वह वायुमंडल में उपस्थित कणों द्वारा विभिन्न दिशाओं में प्रसारित हो जाता है। इस प्रक्रिया को ही 'प्रकाश का प्रकीर्णन' कहते हैं।

आकाश का रंग सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही नीला दिखाई देता है।

इंद्रधनुष  

परावर्तन, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण इन्द्रधनुष है। बरसात के मौसम में जब पानी की बूँदे सूर्य पर पड़ती है तब सूर्य की किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण बनता है। आकाश में संध्या के समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लालनारंगीपीलाहराआसमानीनीला, तथा बैंगनी रंगों का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। यह इंद्रधनुष कहलाता है।

प्रकार

इन्द्रधनुष दो प्रकार के होते है जो इस प्रकार हैं:-
  • प्राथमिक इन्द्रधनुष
  • द्वितीयक इन्द्रधनुष

इन्द्रधनुष

प्राथमिक इन्द्रधनुष

जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है, तो प्राथमिक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है। प्राथमिक इन्द्रधनुष में लाल रंग बाहर की ओर और बैंगनी रंग अन्दर की ओर होता है। इसमें अन्दर वाली बैंगनी किरण आँख पर 40°8' तथा बाहर वाली लाल किरण आँख पर 42°8' का कोण बनाती है।

द्वितीयक इन्द्रधनुष

जब वर्षा की बूँदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन व दो बार परावर्तन होता है, तो द्वितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है। इसमें बाहर की ओर बैंगनी रंग एवं अन्दर की ओर लाल रंग होता है। बाहर वाली किरण आँख पर 54°52' का कोण तथा अन्दर वाली किरण 50°8' का कोण बनाती है। द्वितीयक इन्द्रधनुष प्राथमिक इन्द्रधनुष की अपेक्षा कुछ धुँधला दिखलाई पड़ता है।

वर्ण विक्षेपण  

जब सूर्य का प्रकाश प्रिज़्म से होकर गुजरता है तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज़्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम कहते हैं तथा श्वेत प्रकाश का अपने अवयवी रंगों में विभक्त होना वर्ण विक्षेपणकहलाता है।
  • सूर्य के प्रकाश से प्राप्त रंगों में बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है।
  • न्यूटन ने 1666 ई. में पाया कि भिन्न-भिन्न रंग भिन्न-भिन्न कोणों से विक्षेपित होते हैं।
  • वर्ण विक्षेपण किसी पारदर्शी पदार्थ में भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के भिन्न-भिन्न वेग होने के कारण होता है। अतः किसी पदार्थ का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होता है।

    वर्णक्रम 

    • जब सूर्य का प्रकाश प्रिज़्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज़्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम कहते हैं।
    • अंग्रेज़ी भाषा में इसे स्पैक्ट्रम (Spectrum) कहा जाता है।
    • इसे नापने में मेगाहर्ट्ज का प्रयोग किया जाता है।
    • वर्णक्रम की आवृत्तियों की दूरी एक मानक द्वारा तय की जाती है।

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